Gareebi Shayari

   Gareebi Shayari       

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ऐ मेरे नूरे-नज़र, लख़्ते-जिगर, जाने-सुक़ूँ ! 
 नींद आना तुझे दुश्वार नहीं है, सो जा ! 

 ऐसे बदबख़्त ज़माने में हज़ारों होंगे, 

 जिनको लोरी भी मयस्सर नहीं आती होगी ! 
 मेरी लोरी से तेरी भूख नहीं मिट सकती, 
 मैंने माना कि तुझे भूख सताती होगी ! 

 लेकिन, ऐ मेरी उम्मीदों के हसीं ताजमहल, 

 मैं तुझे भूख की लोरी ही सुना सकती हूँ ! 
 तेरा रह-रह के रोना नहीं देखा जाता, 
 अब तुझे दूध नहीं, ख़ून पिला सकती हूँ ! 

 भूख तो तेरा मुक़द्दर है, ग़रीबी की क़सम, 

 भूख की आग में जल-जल के ये रोना कैसा ? 
 तू तो आदी है इसी तरह से सो जाने का, 
 भूख की गोद में आज फिर न सोना कैसा ? 

 आज की रात फ़क़त तू ही नहीं, तेरी तरह, 

 और कितने हैं जिन्हें भूख लगी है, बेटे ! 
 रोटियाँ बन्द हैं पूँजी के तहख़ानों में, 
 भूख इस मुल्क के खेतों में उगी है, बेटे ! 

 लोग कहते हैं कि इस मुल्क के ग़द्दारों ने, 

 सिर्फ़ महँगाई बढ़ाने को छुपाया है अनाज ! 
 ऐसे कंगाल भी इस मुल्क में सो जाते हैं,

 हल चलाया है जिन्होंने,नहीं पाया है अनाज ! 
 तू ही इस मुल्क में कंगाल नहीं है, सो जा ! 

 ऐ मेरे नूरे-नज़र, लख़्ते-जिगर, जाने-सुक़ूँ ! 

 नींद आना तुझे दुश्वार नहीं है, सो जा ! 
~Qafeel Aazar

~गरीबों की औकात ना पूछो साहब~ 
 गरीबों की औकात ना पूछो तो अच्छा है,
 इनकी कोई जात ना पूछो तो अच्छा है,

 चेहरे कई बेनकाब हो जायेंगे,
 ऐसी कोई बात ना पूछो तो अच्छा है.

 खिलौना समझ कर खेलते जो रिश्तों से,
 उनके निजी जज्बात ना पूछो तो अच्छा है,

 बाढ़ के पानी में बह गए छप्पर जिनके,
 कैसे गुजारी रात ना पूछो तो अच्छा है.

 भूख ने निचोड़ कर रख दिया है जिन्हें,
 उनके तो हालात ना पूछो तो अच्छा है,

 मज़बूरी में जिनकी लाज लगी दांव पर,
 क्या लाई सौगात ना पूछो तो अच्छा है.

 गरीबों की औकात ना पूछो तो अच्छा है,
 इनकी कोई जात ना पूछो तो अच्छा है.
 ~करन वीर

यहाँ गरीब को मरने की इसलिए भी जल्दी है साहब,
कहीं जिन्दगी की कशमकश में कफ़न महँगा ना हो जाए.

जनाजा बहुत भारी था उस गरीब का, 
शायद सारे अरमान साथ लिए जा रहा था.

वो जिसकी रोशनी कच्चे घरों तक भी पहुँचती है, 
न वो सूरज निकलता है, न अपने दिन बदलते हैं.

तहजीब की मिसाल गरीबों के घर पे है, 
दुपट्टा फटा हुआ है मगर उनके सर पे है.

हजारों दोस्त बन जाते है, जब पैसा पास होता है, 
टूट जाता है गरीबी में, जो रिश्ता ख़ास होता है.

रुखी रोटी को भी बाँट कर खाते हुये देखा मैंने, 
सड़क किनारे वो भिखारी शहंशाह निकला.


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3 Comments

  1. आप ने बहुत ही अच्छी शायरी लिखी है। धन्यवाद
    अगर आप और भी शायरी पढ़ना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करे -Republic Day Shayari

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