Qateel Shifai


Qateel Shifai


लिख दिया अपने दर पे किसी ने, इस जगह प्यार करना मना है

प्यार अगर हो भी जाए किसी को, इसका इज़हार करना मना है

उनकी महफ़िल में जब कोई आये, पहले नज़रें वो अपनी झुकाए

वो सनम जो खुदा बन गये हैं, उनका दीदार करना मना है

जाग उठ्ठेंगे तो आहें भरेंगे, हुस्न वालों को रुसवा करेंगे

सो गये हैं जो फ़ुर्क़त के मारे, उनको बेदार करना मना है

हमने की अर्ज़ ऐ बंदा-परवर, क्यूँ सितम ढा रहे हो यह हम पर

बात सुन कर हमारी वो बोले, हमसे तकरार करना मना है

सामने जो खुला है झरोखा, खा न जाना क़तील उसका धोखा

अब भी अपने लिए उस गली में, शौक-ए-दीदार करना मना है.


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मंज़िल जो मैं ने पाई तो शशदर भी मैं ही था...

मंज़िल जो मैं ने पाई तो शशदर भी मैं ही था

वो इस लिए के राह का पत्थर भी मैं ही था

शक हो चला था मुझ को ख़ुद अपनी ही ज़ात पर

झाँका तो अपने ख़ोल के अंदर भी मैं ही था

होंगे मेरे वजूद के साए अलग अलग

वरना बरून-ए-दर भी पस-ए-दर भी मैं ही था

पूछ उस से जो रवाना हुए काट कर मुझे

राह-ए-वफ़ा में शाख़-ए-सनोबर भी मैं ही था

आसूदा जिस क़दर वो हुआ मुझ को ओढ़ कर

कल रात उस के जिस्म की चादर भी मैं ही था

मुझ को डरा रही थी ज़माने की हम-सरी

देखा तो अपने क़द के बराबर भी मैं ही था

आईना देखने पे जो नादिम हुआ 'क़तील'

मुल्क-ए-ज़मीर का वो सिकंदर भी मैं ही था.

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सारी बस्ती में ये जादू...

सारी बस्ती में ये जादू नज़र आए मुझको

जो दरीचा भी खुले तू नज़र आए मुझको.

सदियों का रस जगा मेरी रातों में आ गया

मैं एक हसीन शक्स की बातों में आ गया.

जब तस्सवुर मेरा चुपके से तुझे छू आए

देर तक अपने बदन से तेरी खुशबू आए.

गुस्ताख हवाओं की शिकायत न किया कर

उड़ जाए दुपट्टा तो खनक कर.

रुम पूछो और में न बताउ ऐसे तो हालात नहीं

एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं.

रात के सन्नाटे में हमने क्या-क्या धोके खाए है

अपना ही जब दिल धड़का तो हम समझे वो आए है.

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हाथ दिया उसने मेरे हाथ में...

हाथ दिया उसने मेरे हाथ में.

मैं तो वली बन गया एक रात में.

इश्क़ करोगे तो कमाओगे नाम

तोहमतें बटती नहीं खैरात में.

इश्क़ बुरी शै सही, पर दोस्तो.

दख्ल न दो तुम, मेरी हर बात में.

हाथ में कागज़ की लिए छतरियाँ

घर से ना निकला करो बरसात में.

रत बढ़ाया उसने न 'क़तील' इसलिए

फर्क था दोनों के खयालात में.

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किया है प्यार जिसे हम ने ज़िंदगी की तरह...

किया है प्यार जिसे हमने ज़िन्दगी की तरह

वो आशना भी मिला हमसे अजनबी की तरह

किसे ख़बर थी बढ़ेगी कुछ और तारीकी

छुपेगा वो किसी बदली में चाँदनी की तरह

बढ़ा के प्यास मेरी उस ने हाथ छोड़ दिया

वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल्लगी की तरह

सितम तो ये है कि वो भी ना बन सका अपना

कूबूल हमने किये जिसके गम खुशी कि तरह

कभी न सोचा था हमने "क़तील" उस के लिये

करेगा हमपे सितम वो भी हर किसी की तरह.

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पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइये...

पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइये

फिर जो निगाह-ए-यार कहे मान जाइये

पहले मिज़ाज-ए-राहगुज़र जान जाइये

फिर गर्द-ए-राह जो भी कहे मान जाइये

कुछ कह रही है आपके सीने की धड़कने

मेरी सुनें तो दिल का कहा मान जाइये

इक धूप सी जमी है निगाहों के आस पास

ये आप हैं तो आप पे क़ुर्बान जाइये

शायद हुज़ूर से कोई निस्बत हमें भी हो

आँखों में झाँक कर हमें पहचान जाइये.

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वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे...

वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे

मैं तुझको भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे

रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िन्दगी बनकर

ये और बात मेरी ज़िन्दगी वफ़ा न करे

ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में

ख़ुदा किसी से किसी को मगर जुदा न करे

सुना है उसको मोहब्बत दुआयें देती है

जो दिल पे चोट तो खाये मगर गिला न करे

ज़माना देख चुका है परख चुका है उसे

"क़तील" जान से जाये पर इल्तजा न करे.

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अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको...

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको

मैं हूँ तेरा नसीब अपना बना ले मुझको

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी

ये तेरी सादादिली मार न डाले मुझको

मैं समंदर भी हूँ, मोती भी हूँ, ग़ोताज़न भी

कोई भी नाम मेरा लेके बुला ले मुझको

तूने देखा नहीं आईने से आगे कुछ भी

ख़ुदपरस्ती में कहीं तू न गँवा ले मुझको

कल की बात और है मैं अब सा रहूँ या न रहूँ

जितना जी चाहे तेरा आज सता ले मुझको

ख़ुद को मैं बाँट न डालूँ कहीं दामन-दामन

कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको

मैं जो काँटा हूँ तो चल मुझसे बचाकर दामन

मैं हूँ गर फूल तो जूड़े में सजा ले मुझको

मैं खुले दर के किसी घर का हूँ सामाँ प्यारे

तू दबे पाँव कभी आ के चुरा ले मुझको

तर्क-ए-उल्फ़त की क़सम भी कोई होती है क़सम

तू कभी याद तो कर भूलने वाले मुझको

वादा फिर वादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ "क़तील"

शर्त ये है कोई बाँहों में सम्भाले मुझको.

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अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की 
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मेरी तन्हाई की.
कौन सियाही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में 
मैंने आँख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की. 
वस्ल की रात न जाने क्यूँ इसरार था उन को जाने पर 
वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी दानाई की ।

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प्यार तुम्हारा भूल जाऊँ, लेकिन प्यार तुम्हारा है 
ये इक मीठा ज़हर सही, ये ज़हर भी आज गंवारा है।

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हमको आपस में मोहब्बत भी नहीं करने देते 
इक यही ऐब है इस शहर के दानाओं में 

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अपनी हदों में रहिए कि रह जाए आबरू 
ऊपर जो देखना है तो पगड़ी संभालिये 

ख़ुश्बू तो मुद्दतों की ज़मीं-दोज़ हो चुकी 
अब सिर्फ़ पत्तियों को हवा में उछालिए 

सदियों का फ़र्क़ पड़ता है लम्हों के फेर में 
जो ग़म है आज का उसे कल पर न टालिए 

आया ही था अभी मिरे लब पे वफ़ा का नाम 
कुछ दोस्तों ने हाथ में पत्थर उठा लिए 

जब भी तन्हा मुझे पाते हैं गुज़रते लम्हे 
तेरी तस्वीर सी राहों में बिछा जाते हैं 

मैं कि राहों में भटकता ही चला जाता हूँ 
मुझ को ख़ुद मेरी निगाहों से छुपा जाते हैं 

मेरे बेचैन ख़यालों पे उभरने वाली 
अपने ख़्वाबों से न बहला मेरी तन्हाई को

जब तिरी साँस मिरी साँस में तहलील नहीं 
क्या करेंगी मिरी बाँहें तेरी अंगड़ाई को ।

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अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ

कोई आंसू तेरे दामन पर गिराकर
बूंद को मोती बनाना चाहता हूँ

थक गया मैं करते-करते याद तुझको
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ

छा रहा है सारी बस्ती में अंधेरा
रोशनी को घर जलाना चाहता हूँ

आखरी हिचकी तेरे ज़ानो पे आये
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ। 

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कट गया वक़्त मुस्कुराहट में 
क़हक़हे रूह को पसंद न थे 

वो भी आँखें चुरा गए आख़िर 
दिल के दरवाज़े जिन पे बंद न थे 

सौंप जाता है मुझ को तन्हाई 
जिस पे दिल ऐतवार करता है

बनती जाती हूं नख़्ल-ए-सहराई 
तू ने चाहा तो मैं ने मान लिया 

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